बिटकाइन : जानकारी में ही बचाव
(सचिन गोयल)
बिटकाइन को लेकर पूरे विश्व में संदेह का माहौल है। चीन के बाद भारत में भी रिजर्व बैंक ने चिंता जाहिर की है। बिटकाइन एक डिजिटल करेंसी है, जो व्यक्ति-से-व्यक्ति के बीच लेनदेन का डिजिटल साधन है। बेसिक रूप में समझने के लिए ‘‘पेमेंट वॉलेट’ से किया गया पेमेंट एक तरह से ऐसा ही लेनदेन है। आपके वॉलेट में रखा हुआ पैसा रुपये के साथ बराबरी में फिक्स है मगर वो रुपया नहीं है, जब तक की वो वापस बैंक अकाउंट में न चला जाए। वॉलेट से आपको अपने अकाउंट में या अपने अकाउंट से वॉलेट में डालना होता है। इस डिजिटल करेंसी को वही स्वीकार कर सकेगा, जिसके पास खुद उस वॉलेट का अकाउंट हो इस सिस्टम को ‘‘पीयर टू पीयर’ कहा जाता है।
प्राचीन काल में जब लेनदेन में करेंसी को प्रादुर्भाव नहीं हुआ था, उस समय ‘‘बार्टर सिस्टम’ था। बार्टर सिस्टम में कोई बिचौलिया नहीं होता था। आज बैंक करेंसी इशू करते हैं और उनकी भूमिका बिचौलिये की है। बैंक करेंसी को छापने एवं उसको निर्गमित एवं नियमित करने के एवज में कमीशन लेता है, जो नजर तो नहीं आता पर कहीं-न-कहीं मनी सप्लाई में जुड़ जाता है अब यदि हम और आप आपसी लेनदेन के समायोजन को किसी ऐसी वस्तु से करें जो फिजिकल रूप में न हो कर आभासी रूप में हो तो बिचौलिये की आवश्यकता ही नहीं रहेगी। बात फिजिकल या डिजिटल की नहीं है। बात है उसके लिए गारंटी देने वाली अथॉरिटी की।
बिटकाइन को जारी करने वाली कोई अथॉरिटी नहीं है। इसकी जिम्मेदारी बिटकाइन सिस्टम से जुड़े हुए लोगों की है, जो उस हर लेनदेन को रिकॉर्ड करते हैं और उसके एवज में फीस के तौर पर कुछ हिस्सा बिटकाइन का प्राप्त करते हैं। इसके अलावा बिटकाइन का उत्खनन भी किया जा सकता है। जैसे सोने का खनन होता है। मानों इधर एक डिजिटल खदान है, जिस तक पहुंचने के लिए ‘‘खुल जा सिम सिम’ टाइप का एक हैश प्रोग्राम है जो हर बार बदल जाता है। यह एक तिलिस्म है और यही इसका आकर्षण है। इस कठिनता के चलते बिटकाइन की सप्लाई नियंत्रित होती है। यहां कोई केंद्रीय बैंक नहीं है, जिसे मुद्रास्फीति या आर्थिक विकास देखना हो। यह भी एक चिंता का विषय है। अभी कुछ समय पूर्व तक हम देशों के मध्य ‘‘करेंसी वार’ की बात कर रहे थे और अचानक से बिटकाइन एक भस्मासुर के रूप में प्रकट हो गया।
इस समस्या से अलग अलग राष्ट्र अलग-अलग तरह से निपट रहे हैं। रूस ने इसको मान्यता दी है, वो इसे डॉलर के आधिपत्य को चुनौती के रूप में देख रहा है। चीन ने इसके खिलाफ स्टैंड लिया है क्योंकि वो इसे कहीं-न-कहीं एक पारदर्शी व्यवस्था मान रहा है। यह विचित्र लगेगा मगर बिटकाइन नितांत अपारदर्शी व्यवस्था नहीं है। इससे अधिक अपारदर्शिता कैश एवं गोल्ड में है। ऐसा जरूर है कि अवैध लेनदेन के लिए बिटकाइन एक पसंदीदा माध्यम है क्योंकि इसे काफी समय तक बैंकिंग व्यवस्था से दूर रखा जा सकता है। भारत में बिटकाइन की मान्यता को लेकर भ्रम की स्थिति बरकरार है।
रिजर्व बैंक का मानना है कि किसी भी ऐसी चीज को रोक कर नहीं रखा जा सकता जिसका समय आ गया हो। मगर उसकी चिंता है बिटकाइन में अवैध रूप से हो रही सट्टेबाजी। भारत का इतिहास है कि यहां तो इस बात पर भी सट्टा लगा लिया जाता है कि बारिश में पतनाला कितनी दूर तक जाएगा। इस अवैध व्यापार को रोकना सिर्फ जागरूकता से ही हो सकता है। चिंता है पोंजी स्कीम के रूप में बिटकाइन अर्थव्यवस्था में शामिल न हो जाए। आजकल जिस तरह की उतार-चढ़ाव देखने को आ रहे हैं, बिटकाइन में अवश्य ही इस आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता। निवेशक प्राइवेट इंतजामों के द्वारा इस तरह के निवेश में कहीं-न-कहीं ट्रैप हो सकते हैं। बिटकाइन का न कोई रेगुलेटर है न ही उसके मूल्य का कोई आधार। निवेश की दुनिया के बादशाह माने जाने वाले वारेन बफेट बिटकाइन को एक निवेश के रूप में अच्छा नहीं समझते और इसको एक बबल बताते हैं। कमोडिटी के विश्व प्रसिद्ध इन्वेस्टर/विश्लेषक जिम रोजर्स इसको बुलबुला मानते हैं। ‘
‘जेपी मॉर्गन चेस’ के सीईओ जिमी दिमोन ने तो बिटकाइन को फ्रॉड ही करार दिया है। हाल ही में रिजर्व बैंक ने तीसरी बार सचेत किया है कि बिटकाइन को या किसी भी वर्चुअल करेंसी को कोई मान्यता प्रदान नहीं की गई है और इनमें किसी भी प्रकार की डीलिंग करने वाला खुद इसके लिए उत्तरदायी होगा। रिजर्व बैंक ने अपनी चेतावनी में पांच बाते प्रमुखता से बताई हैं: एक डिजिटल करेंसी को डिजिटल रूप में रखा जाता है तो वो हैकिंग और वायरस अटैक की जद में आ सकती है। दूसरी बात इसकी कोई केंद्रीय एजेंसी नहीं है जो इसको कंट्रोल करे। तीसरी बात है, कीमत में उतार-चढ़ाव निवेशक के लिए घातक हो सकता है। इसमें सट्टेबाजी की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता। चौथी बात है कि बिटकाइन जैसे ‘‘क्रिप्टो मुद्रा’ जिन एक्सचेंज में ली दी जा रही हैं, उनका नियंतण्र जिन देशों में है उनके बारे में स्थिति स्पष्ट नहीं है।
अंतिम बात है बिटकाइन का अपराध जनित लेनदेन में उपयोग हो रहा है और इसमें निवेश करने से एंटी मनीलांड्रिंग एवं टेरर फंडिंग के कानूनों का उल्लंघन कब और कितनी मात्रा में हो जाए इसका अनुमान लगाना मुश्किल है। बिटकाइन के दाम इस साल में एक हजार प्रतिशत वृद्धि दर्ज कर चुके हैं। आज बिटकाइन की कुल सकरुलेशन मूल्य लगभग 190 बिलियन डॉलर है, जो कि न्यूजीलैंड जैसे देश की जीडीपी से भी अधिक है। विश्व के दो बड़े इन्वेस्टमेंट बैंक ‘‘गोल्डमन’ एवं ‘‘यूबीएस’ की कुल परिसंपत्तियां भी बिटकाइन की कुल मूल्य से कम हैं। अगर ये बुलबुला है, जैसी की आशंका जाहिर की जा रही है, तो यह आइडिया जो कि 2008 के क्राइसिस के कारण प्रकाश में आया था, खुद में उससे बड़ा क्राइसिस का कारण बन सकता है। कुछ वर्ष पूर्व 2013 में अमेरिका में ऑनलाइन ड्रग माफिया से एक लाख चवालीस हजार बिटकाइन एफबीआई ने जब्त किए थे। आज बिटकाइन सुरसा का रूप धारण कर चुका है और एक आम निवेशक को इससे दूर रहने की सलाह ही उचित सलाह है। रिजर्व बैंक और बड़े निवेश सलाहकारों की बात को मानें।
Krishna IAS
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