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14122017 Free Notes for Hindi Essay Writing for Judicial Coaching In Chandigarh- Topic - ग्लोबल वार्मिंग- Global Warming
last updated on
2017-12-14T00:41:10

   ग्लोबल वार्मिंग               

सचिन गोयल

 महासागर, बर्फ की चोटी सहित पूरा पर्यावरण और धरती की सतह का नियमित गर्म होने की प्रक्रिया को ग्लोबल वार्मिंग कहते है। पिछले कुछ वर्षों में वैश्विक तौर पर वातावरणीय तापमान में वृद्धि देखी गई है। पर्यावरणीय सुरक्षा एजेंसी के अनुसार, पिछले शताब्दी में 1.4 डिग्री फॉरेनहाईट (0.8 डिग्री सेल्सियस) के लगभग धरती के औसत तापमान में वृद्धि हुई है। ऐसा भी आकलन किया गया है कि अगली शताब्दी तक 2 से 11.5 डिग्री F की वृद्धि हो सकती है।

ग्लोबल वार्मिंग के कारण:

                 ग्लोबल वार्मिंग के बहुत सारे कारण है, इसका मुख्य कारण ग्रीनहाउस गैस है जो कुछ प्राकृतिक प्रक्रियाओं से तो कुछ इंसानों की पैदा की हुई है। जनसंख्या विस्फोट, अर्थव्यवस्था और ऊर्जा के इस्तेमाल की वजह से 20वीं सदी में ग्रीनहाउस गैसों को बढ़ते देखा गया है। वातावरण में कई सारे ग्रीनहाउस गैसों के निकलने का कारण औद्योगिक क्रियाएँ है, क्योंकि लगभग हर जरुरत को पूरा करने के लिये आधुनिक दुनिया में औद्योगिकीकरण की जरुरत है।

                पिछले कुछ वर्षों में कॉर्बनडाई ऑक्साइड(CO2) और सलफरडाई ऑक्साइड (SO2) 10 गुना से बढ़ा है। ऑक्सीकरण चक्रण और प्रकाश संश्लेषण सहित प्राकृतिक और औद्योगिक प्रक्रियाओं के अनुसार कॉर्बनडाई ऑक्साइड का निकलना बदलता रहता है। कार्बनिक समानों के सड़न से वातावरण में मिथेन नाम का ग्रीनहाउस गैस भी निकलता है। दूसरे ग्रीनहाउस गैस है-नाइट्रोजन का ऑक्साइड, हैलो कार्बन्स, CFCs क्लोरिन और ब्रोमाईन कम्पाउंड आदि। ये सभी वातावरण में एक साथ मिल जाते है और वातावरण के रेडियोएक्टिव संतुलन को बिगाड़ते है। उनके पास गर्म विकीकरण को सोखने की क्षमता है जिससे धरती की सतह गर्म होने लगती है।

               अंर्टाटिका में ओजोन परत में कमी आना भी ग्लोबल वार्मिंग का एक कारण है। CFCs गैस के बढ़ने से ओजोन परत में कमी आ रही है। ये ग्लोबल वार्मिंग का मानव जनित कारण है। CFCc गैस का इस्तेमाल कई जगहों पर औद्योगिक तरल सफाई में एरोसॉल प्रणोदक की तरह और फ्रिज में होता है, जिसके नियमित बढ़ने से ओजोन परत में कमी आती है।

               ओजोन परत का काम धरती को नुकसान दायक किरणों से बचाना है। जबकि, धरती के सतह की ग्लोबल वार्मिंग बढ़ना इस बात का संकेत है कि ओजोन परत में क्षरण हो रहा है। हानिकारक अल्ट्रा वॉइलेट सूरज की किरणें जीवमंडल में प्रवेश कर जाती है और ग्रीनहाउस गैसों के द्वारा उसे सोख लिया जाता है जिससे अंतत: ग्लोबल वार्मिंग में बढ़ौतरी होती है। अगर आँकड़ों पर नजर डाले तो ऐसा आकलन किया गया है कि अंर्टाटिका (25 मिलियन किलोमीटर) की छेद का दोगुना ओजोन परत में छेद है। सर्दी और गर्मी में ओजोन क्षरण का कोई खास चलन नहीं है।

              वातावरण में एरोसॉल की मौजूदगी भी धरती की सतह के तापमान को बढ़ाती है। वातावरणीय ऐरोसॉल में फैलने की क्षमता है तथा वो सूरज की किरणों को और अधोरक्त किरणों को सोख सकती है। ये बादलों के लक्षण और माइक्रोफिजीकल बदलाव कर सकते है। वातावरण में इसकी मात्रा इंसानों की वजह से बढ़ी है। कृषि से गर्द पैदा होता है, जैव-ईंधन के जलने से कार्बनिक छोटी बूँदे और काले कण उत्पन्न होते है, और विनिर्माण प्रक्रियाओं में बहुत सारे विभिन्न पदार्थों के जलाए जाने से औद्योंगिक प्रक्रियाओं के द्वारा ऐरोसॉल पैदा होता है। परिवहन के माध्यम से भी अलग-अलग प्रदूषक निकलते है जो वातावरण में रसायनों से रिएक्ट करके एरोसॉल का निर्माण करते है।

ग्लोबल वार्मिंग का प्रभाव:

               ग्लोबल वार्मिंग के बढ़ने के साधनों के कारण कुछ वर्षों में इसका प्रभाव बिल्कुल स्पष्ट हो चुका है। अमेरिका के भूगर्भीय सर्वेक्षणों के अनुसार, मोंटाना ग्लेशियर राष्ट्रीय पार्क में 150 ग्लेशियर हुआ करते थे लेकिन इसके प्रभाव की वजह से अब सिर्फ 25 ही बचे हैं। बड़े जलवायु परिवर्तन से तूफान अब और खतरनाक और शक्तिशाली होता जा रहा है। तापमान अंतर से ऊर्जा लेकर प्राकृतिक तूफान बहुत ज्यादा शक्तिशाली हो जा रहे है। 1895 के बाद से साल 2012 को सबसे गर्म साल के रुप में दर्ज किया गया है और साल 2003 के साथ 2013 को 1880 के बाद से सबसे गर्म साल के रुप में दर्ज किया गया।

              ग्लोबल वार्मिंग की वजह से बहुत सारे जलवायु परिवर्तन हुए है जैसे गर्मी के मौसम में बढ़ौतरी, ठंडी के मौसम में कमी,तापमान में वृद्धि, वायु-चक्रण के रुप में बदलाव, जेट स्ट्रीम, बिन मौसम बरसात, बर्फ की चोटियों का पिघलना, ओजोन परत में क्षरण, भयंकर तूफान, चक्रवात, बाढ़, सूखा आदि।

ग्लोबल वार्मिंग का समाधान:

              सरकारी एजेँसियों, व्यापारिक नेतृत्व, निजी क्षेत्रों और एनजीओ आदि के द्वारा, कई सारे जागरुकता अभियान और कार्यक्रम चलाये और लागू किये जा रहे है। ग्लोबल वार्मिंग के द्वारा कुछ ऐसे नुकसान है जिनकी भरपाई असंभव है(बर्फ की चोटियों का पिघलना)। हमें अब पीछे नहीं हटना चाहिए और ग्लोबल वार्मिंग के मानव जनित कारकों को कम करने के द्वारा हर एक को इसके प्रभाव को घटाने के लिये अपना बेहतर प्रयास करना चाहिए। हमें वातावरण से ग्रीनहाउस गैसों का कम से कम उत्सर्जन करना चाहिये और उन जलवायु परिवर्तनों को अपनाना चाहिये जो वर्षों से होते आ रहे है। बिजली की ऊर्जा के बजाये शुद्ध और साफ ऊर्जा के इस्तेमाल की कोशिश करनी चाहिये अथवा सौर, वायु और जियोथर्मल से उत्पन्न ऊर्जा का इस्तेमाल करना चाहिये। तेल जलाने और कोयले के इस्तेमाल, परिवहन के साधनों, और बिजली के सामानों के स्तर को घटाने से ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव को घटाया जा सकता है।
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